सारे शहर को इस बात की खबर हो गयी
क्यो ना सजा दे इस कमबख्त दिल को
दोस्ती का इरादा था और महोब्बत हो गयी
इश्क ओर दोस्ती मेरे दो जहान है
इश्क मेरी रुह तो दोस्ती मेरा ईमान है
इश्क पर तो फिदा करदु अपनी पुरी जिंदगी
पर दोस्ती पर मेरा इश्क भी कुर्बान है
राज़ खोल देते हैं नाजुक से इशारे अक्सर
कितनी खामोश मोहब्बत की जुबान होती है
मोहब्बत नाम है जिसका वो ऐसी क़ैद है यारों
कि उम्रें बीत जाती हैं सजा पूरी नहीं होती
रोज साहिल से समंदर का नजारा न करो
अपनी सूरत को शबो-रोज निहारा न करो
आओ देखो मेरी नजरों में उतर कर खुद को
आइना हूँ मैं तेरा मुझसे किनारा न करो
छुपाने लगा हूँ आजकल कुछ राज अपने आप से
सुना है कुछ लोग मुझको मुझसे ज्यादा जानने लगे हैं
ये न समझ कि मैं भूल गया हूँ तुझे
तेरी खुशबू मेरे सांसो में आज भी है
मजबूरियों ने निभाने न दी मोहब्बत
सच्चाई मेरी वफाओं में आज भी है
चलो उसका नही तो खुदा का एहसान लेते हैं
वो मिन्नत से ना माना तो मन्नत से मांग लेते हैं
ये भी मुमकिन है कि तुम से भी वफ़ा हो जाए
ये भी अरकान ए मुहब्बत है अदा हो जाए
वाह वाह बोलने की आदत डाल लो दोस्तों
मैं मोहब्बत में अपनी बरबादिया लिखने वाला हूँ
तुम याद आओगे यकीन था
इतना आओगे अंदाज़ा नही था
तेरी चाहत में रुसवा यूं सरे बाज़ार हो गये
हमने ही दिल खोया और हम ही गुनाहगार हो गये
वो दुश्मन बनकर मुझे जीतने निकले थे
दोस्ती कर लेते तो मैं खुद ही हार जाता
आओ मिलकर मोहब्बत को आग लगा दे
की फिर ना तबाह हो किसी मासूम की जिन्दगी
इंसान अगर प्यार में पड़े तो ग़म में पड़ ही जाता है
क्योंकि प्यार किसी को चाहे जितना भी करो थोड़ा सा तो कम पड़ ही जाता है
लोग हर बार यही पूछते हैं तुमने उसमें क्या देखा
मैं हर बार यही कहता हूँ बेवजह होती है मोहब्बत
जो दिखाई देता वो हमेशा सच नहीं होता
कही धोखे में आँखे है तो कही आँखों में धोखा है
दिल रोज सजता है नादान दुल्हन की तरह
और गम रोज चले आते हैं बाराती बन कर
वक़्त का सितम तो देखिए
खुद गुज़र गया हमे वही छोड़ कर
वो कर दिया तूने जो ना कर पाए हकीम भी
के तेरे छूने से अब मीठा हो गया है नीम भी
ये नर्म मिजाज ही है कि फूल कुछ नही कहते
वरना कभी दिखलाइये कांटों को मसलकर
तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिब
कि सारी उम्र हम अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे
आज दरगाह में मन्नत का धागा नहीं
अपना दिल बाँध के आया हूँ तेरे लिए
इतना भी बेकार न समझो मुझे जनाब
कलाकार हूँ शब्दों से महफ़िलें सजाता हूँ
दिलों में मतलब और ज़ुबान से प्यार करते हैं बहुत से लोग दुनिया में यही कारोबार करते हैं
मेरी कोशिश तो यही है कि ये मासूम रहे
और दिल है कि समझदार हुआ जाता है
सारा का सारा ग़ुरूर यहीं रह जाएगा,
के ज़िंदगी साथ ले’कर कुछ नहीं जाती.......
इतना भी गुमान न कर अपनी जीत पर
तेरे शहर में जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के हैं...
सलीका अदब का तो बरकरार रखिये जनाब,
रंज़िशें अपनी जगह है, सलाम अपनी जगह…!!
ना हमे तुम सा
ना तुमहे हम सा मिलेगा
तुम अनमोल ठहरे और हम नायाब
इस से पहले कि बेवफा हो जाएं
क्युं न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएं
नहीं ‘मालूम ‘हसरत है या तू मेरी मोहब्बत है,
बस इतना जानता हूं कि मुझको तेरी जरूरत है।
ना जाने कौन सी दौलत हैं कुछ लोगों के लफ़्जों में,
बात करते हैं तो दिल ही खरीद लेते हैं।
वक़्त आने पे जवाब देंगे सबको,
लहजे सबके याद हैं हमें..
हम इस तरह से हारेंगे कि तुम जीत कर पछताओगे..
लफ़्ज़ों के भी जायके होते हैं,
बोलने से पहले चख लिया करें..
हमारे जीने का अलग अंदाज़ है
एक आंख में आंसू और दूसरे में ख़्वाब है
मोम हैं हर सांचे में ढल जाते हैं...
छुपे छुपे से रहते हैं सरेआम नहीं हुआ करते, कुछ रिश्ते बस एहसास होते हैं उनके नाम नहीं हुआ करते..
मेरे लफ्ज़ फ़ीके पड़ गए तेरी एक अदा के सामने, मैं तुझे ख़ुदा कह गया अपने ख़ुदा के सामने..
टुकडे पडे थे राह में किसी हसीना की तस्वीर के, लगता है कि कोई दिवाना आज बहुत रोया होगा..
तुम आ जाओ मेरी कलम की स्याही बनकर, मैं तुम्हें अपनी ज़िन्दगी के हर पन्ने में उतार दूँ..
कभी साथ बैठो तो कहूँ, क्या दर्द हैं मेरा, अब तुम दूर से पूछोगे, तो खैरियत ही कहूँगा..
वो आज करते है नजर अंदाज तो बुरा क्या मानू, टूट कर पागलो की तरह मोहब्बत भी तो सिर्फ मैंने की थी..
मुद्दत हो गयी, कोइ शख्स तो अब ऐसा मिले, बाहर से जो दिखता हो, अन्दर भी वैसा ही मिले..
नफरत करना तो कभी सिखा ही नही, हमने दर्द को भी चाहा है अपना समझकर..
मैंने समुन्दर से सीखा है जीने का सलीका, चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना..
जिनके पास अपने है वो अपनों से झगड़ते हैं, नहीं जिनका कोई अपना वो अपनों को तरसते है..
आईना आज फिर रिशवत लेता पकडा गया, दिल में दर्द था ओर चेहरा हंसता हुआ पकडा गया..
सख़्त हाथों से भी छूट जाती हैं कभी कभी उँगलियाँ, रिश्ते ज़ोर से नही तमीज़ से थामने चाहिए..