जिम्मेदारियां बाँध देती है अपना शहर न छोड़ने को,
वरना कौन तरक्कियों की सीढियां चढ़ना नहीं चाहता !!
आइना फिर आज रिश्वत लेते पकड़ा गया,
दिल में दर्द था फिर भी चेहरा हँसता हुआ दिखाई दिया
कुछ तू ही मेरा दर्द समझ ले ऐ यार,
हँसता हुआ चेहरा तो ज़माने के लिए है
मुंह खोल कर तो हंस देता हूँ मैं आज भी,
दिल खोल कर हंसे मुझे ज़माने गुज़र गए
सोचूं तो बाज़ार भी छोटा लगता है,
घर के अंदर इतनी जरूरतें रक्खी ह
लोग टूट जाते है एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में
हर दिन खड़ी रहती है दरवाजे पर,
जरूरतें केलेन्डर देखा नहीं करती
आज फिर माँ हमें मारेगी बहुत रोने पर,
आज फिर गाँव में आया है खिलौने वाला
रोज़ हम उदास होते है और शाम गुज़र जाती है,
एक दिन हम गुज़र जायेंगे और शाम उदास होगी
कोई तो खबर लो मेरे दुश्मन ए जान की,
कई रोज़ से मेरे आँगन में पत्थर क्यू नहीं आये
देखी है दरार आज मैंने आईने में,
पत्ता नहीं शीशा टुटा हुआ था या फिर मैं
बरबाद बस्ती में किसको ढूंढ़ते हो,
उजड़े हुए लोगों के ठिकाने नहीं होते
अभी जिन्दगी का रुख बहुत खिलाफ है मेरे,
दिया जिधर भी जलाऊं हवा उधर से चलने लगती है
ताश के पत्ते तो खुशनसीब है यारों,
बिखरने के बाद उठाने वाला तो कोई है
खत्म हो गए रिश्ते उन लोगो से भी,
जिनसे मिलकर लगता था जिंदगी भर साथ देंगे
वक्त से पूछकर बताना जरा,जख्म क्या वाकई भर जाते है ?
शायद खुशी का दौर भी आ जाए एक दिन,
ग़म भी तो मिल गये थे तमन्ना किये बगैर
भूल गया हर शख्स मुझे कुछ इस तरह से,
जैसे भूल जाता है कोई किसीको मरने के बाद
अगर कोई आपके रोने से वापस आ जाता,
तो वो आपको रोने के लिए छोड़कर जाता ही नहीं
कुछ लोग तो इसलिये अपने बने है अभी,
की मेरी बरबादियाँ हो तो दीदार करीब से हो
इन्सान चला जाता है,
फिर सिर्फ अफ़सोस रह जाता है
मुझे क्या पता धोखे की किंमत,
मेरे अपने तो मुफ्त में दे जाते है
एक नए दर्द की तलाश में निकली हूँ मैं,
सूना है पुराने जख्म की दवा एक नया जख्म है
कौन समझ पाया है आज तक हमें,
हम अपने हादसों के इकलौते गवाह है
ये सापों की बसती है ज़रा देख के चल ए नादान,
यहाँ हर शख्स बड़े ही प्यार से डसता है
पढने वाले की कमी है,
वरना गिरते आँसू भी एक किताब ही है
ऐ खुदा रास्ते थोड़े आसान कर देना,
सफर में साथ देने वाले लोगो ने अब रास्ता बदल लिया है
बड़ी बेपरवाह हो गई है खुशियाँ भी आजकल,
कब आती है कब जाती है पता ही नहीं चलत
कुछ बुँदे पानी की ना जाने कबसे रुकी है पलकों पे,
ना ही कुछ कह पाती है और ना ही बह पाती है
बुलन्दी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है,
बहुत ऊँची इमारत हर घडी खतरे में रहती है
इंसान कितना भी खुशकिस्मत क्यूँ ना हो,
उसकी कुछ ख्वाहिशे अधूरी रह ही जाती है
वो कुत्ता तो पाल सकता है,
मगर माँ बोझ लगती ह
शिकवा करें भी तो किससे करें,
ये दर्द भी मेरा और देने वाला भी मेरा
चुभता तो बहुत कुछ मुझको भी है तीर की तरह,
मगर ख़ामोश रहेता हूँ अपनी तक़दीर की तरह
बड़ा मुश्किल है जज़्बातो को पन्नो पर उतारना,
हर दर्द महसूस करना पड़ता है लिखने से पहले
दर्द तो अकेले ही सहते है सभी,
भीड़ तो बस फर्ज अदा करती है
लोग कहते है की जो दर्द देता है वो ही दवा देता है,
पता नहीं ऐसी फालतू बातो को कौन हवा देता है
जो लोग दूसरों की आँखों में आँसूं भरते है,
वो क्यूँ भूल जाते है की उनके पास भी दो आँखें है
ऐ जिंदगी इस बार मुझे तोड़कर ऐसा बिखेर,ना मैं खुद जुड़ पाऊँ और ना कोई फिर से तोड़ पाए
रोज एक नयी तकलीफ, रोज एक नया गम,न जाने कब एलान होगा की मर गए है हम
खुद के रोने की सिसकियाँ अब सुनाई नहीं देती,हमनें आँसुओं को भी डांट कर समझा रखा है
लड़ लिया सबसे,पर हार गया नसीब से
तुम क्या जानो उस दरिया पर क्या गुज़री,तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया
ए आईने तेरी भी हालत अजीब है मेरे दिल की तरह,तुझे भी बदल देते है ये लोग तोड़ने के बाद
ना लफ़्ज़ों का लहू निकलता है ना किताबें बोल पाती है,मेरे दर्द के दो ही गवाह थे और दोनों ही बेजुबां निकले
मैं एक दर्द हूँ दोस्तों,और दर्द किसीको नहीं चाहिए
हसरतें पूरी ना हो तो ना सही,पर ख्वाब देखना कोई गुनाह तो नहीं
सभी के पेट को रोटी, बदन पे कपड़े, सर पे छत,बहुत अच्छे है ये सपने मगर सच्चे नहीं होते
हम तो नरम पत्तो की शाख हुआ करते थे, छिले इतने गए की खंजर हो गए
गरीबी खुद के सिवा औरो पे असरदार नहीं होती, शायद इसीलये भूखो की कोई सरकार नहीं होती
पथ्थर समझ के हमें मत ठुकराओ, कल हम मंदिर में भी हो सकते है