हर गुनाह कबुल है हमें,
बस सजा देने वाला बेगुनाह हो
नहीं जीना मुझे अब उस नकली अपनों के मेले में,
खुश रहने की कोशिश कर लूंगा खुद हीं अकेले में
सम्हाल के रखना अपनी पीठ को यारो,
शाबासी और खंजर दोनो वहीं पर मिलते है
लौट आती है हर दफा इबादत मेरी खाली,
ना जाने किस मंजिल पर खुदा रहता है
ये भी अच्छा है की हम किसी को अच्छे नहीं लगते,
कम से कम कोई रोएगा तो नहीं मेरे मरने पर
चलता रहेगा ये उसके बगैर भी यहाँ,
एक तारा टूट जाने से फ़लक सूना नहीं होता जरुरत है
मुजे कुछ नए नफरत करने वालों की ,
पुराने वाले तो अब चाहने लगे है मुजे
मेरे साथ बैठकर वक्त भी रोया एक दिन,
बोला की बंदा तू ठिक है पर मैं ही ख़राब चल रहा हूँ
लोग सुबूत मांगते है हमसे हमारी बर्बादी का,
कैसे बताए की ये हादसों के हम अकेले ही गवाह है
ये राते भी पूछती है अक्सर मुझसे,
की कब तक गुजारोगे ज़िन्दगी यूँ अंधेरो के सहारे
छोड़ ये बात की मिले ये ज़ख़्म कहाँ से मुझको,
ज़िन्दगी बस तू इतना बता की कितना सफर बाकी है
भिगी है मेरी उंगलिया मेरे अश्को में,
अब चमकते हूए चहरो पर भरोसा नहीं होता
दर्द की जागीर मे रहने की ये ही एक शर्त है,
रात भर रोना और सुबह मुस्कुराना चाहिए !
मुस्कुराने की आदत भी कितनी महेंगी पड़ी हमको,
भुला दिया सबने ये कहकर की तुम तो अकेले भी खुश रह लेते हो
जो जले थे हमारे लिऐ बुझ रहे है वो सारे दिये,
कुछ अंधेरों की थी साजिशें कुछ उजालों ने धोखे दिये
मेरे नसीब की बारिश कुछ इस तरह से होती रही मुझपे,
की ख्वाहिशे सुखती रही और मेरी पलके भीगती रही
जीना तो हमे अच्छी तरह से आता है,
बस आज कल जींदगी हमसे थोडी नाराज है
हकिकत से बहोत दूर है ख्वाहिशें मेरी,
फिर भी ख्वाहिश है की एक ख्वाब हकीकत बन जाए
बहोत शौक था उसे सबको जोड़ के रखने का,
होश तब आया जब अपने ही वज़ूद के टुकडे देखे
शिकायत रब से करता हूँ की तुम मिलते नहीं मुजको,
मगर खुद को तेरे काबिल बनाना रोज भूल जाता हूँ
कच्ची मिट्टी का बना होता है उम्मीदों का घर,
ढह जाता है हकीकत की बारिश में अक्सर
क्या लिखू जिंदगी के बारे में दोस्त,
वही छोड के जा रहे है हमे जो जिंदगी बन गए है
चैन से रहने का हमको मशवरा मत दीजिये,
अब मजा देने लगी है जिन्दगी की मुश्किलें
दरारों से झांकने की आदत है सबको,
पर वक्त पड़ने पर सब दरवाजे बंद मिलते है
उन जख्मों को भरने में वक्त लगता है,
जिनमे शामिल हो अपनों की महेरबानियाँ
मेरी नींद ने आज न आने की कसम खाई है,
आज फिर मेरी आंखे रोएगी समंदर की तरह
एक नजर डाल कभी मेरे मसीहा मुझ पर भी,
तेरा क्या जाएगा एक बीमार को अच्छा कर के
कितने फरेबी है इस दौर के जुगनू भी दोस्तों,
रौशनी दिखाकर अंधेरों की तरफ बुलाते है
ना रोक कलम मुझे दर्द लिखने दे,
आज तो दर्द रोयेगा या फिर दर्द देने वाला !
जो भी आता है एक नयी चोट देकर चला जाता है,माना की मजबूत हूँ मैं पर पत्थर तो नहीं
ए खुदा टुट जाते है मेरे सारे सपने जो मैं सोते हुए देखता हूँ,एक सपना तो पुरा कर दे जो मैं खुली आँखों से देखता हूँ
तू मुझसे मेरे गुनाहों का हिसाब ना मांग मेरे खुदा,मेरी तक़दीर लिखने में कलम तेरी ही चली है
न रुकी वक्त की गर्दिश और न जमाना बदला,पेड़ सुखा तो परिंदों ने ठिकाना बदला
जिसकी किस्मत में रोना लिखा हो दोस्तो,वो मुस्कुरा भी दे तो आँसू निकल आते है
बिना मतलब के दिलासे भी नहीं मिलते यहाँ,लोग दिल में भी दिमाग लिए फिरते है
मेरी मौत पे किसी को अफ़सोस हो न हो ऐ दोस्त,पर तन्हाई रोएगी की मेरा हमसफर चला गया
दुनिया से जीत कर अपनो से हार गया,बाहर से सलामत रहा मगर अंदर से मर गया
उम्र भर हंसते रहो तुम गैरों के साथ,लेकिन मेरी लाश पे आखिर तुमको रोना ही पडेग
चेहरे बदल जाए तो कोई तकलीफ नहीं,लहजे बदल जाए तो बहुत तकलीफ देते है
डूबकर सूरज ने मुझे और भी तनहा कर दिया,मेरा छाया भी छुप गया मेरे अपनों की तरह
दुनियादारी सिखा देती है मक्कारिया,वर्ना पैदा तो हर कोई साफ़ दिल से ही होता है
कितना खुशनुमा होगा वो मेरी मौत का मंजर भी,जब ठुकराने वाले मुझे फिर से पाने के लिये आंसू बहायेंगे !!
मेरे दिल को भला यह बात भी कौन समझाए,की हंमेशा के लिए कोई भी ख़ुशी हरगिज नहीं मिलती है
हमें अक्सर उनकी जरुरत होती है,जिनके लिए हम जरुरी नहीं होते
कुछ लोगो को लगता है की उनकी चालाकियां मुझे समझ नहीं आती,मैं बड़ी ख़ामोशी से देखता हूँ उनको अपनी नजरों से गिरते हुए
हार जाउँगा मुकदमा उस अदालत में ये मुझे यकीन था,जहाँ वक्त बन बैठा जज और नसीब मेरा वकील था
जरुरी नहीं की कुछ तोड़ने के लिए पत्थर ही मारा जाऐ,लहजा बदल कर बोलने से भी बहुत कुछ टूट जाता है !!
कभी हम ही थे तेरे हमसफर,मंजिल मिल गई तुम्हें तो पहचानते नहीं
मैं हँसता हूँ तो बस अपने ग़म छिपाने के लिए,और लोग देख के कहते है काश हम भी इसके जैसे होते
कुछ हार गई तकदीर, कुछ टूट गए सपने,कुछ गैरो ने किया बर्बाद, कुछ भूल गए अपने
जिंदगी और भी मज़ेदार होती,अगर दुःख Made in China होते